Sam Bahadur: क्या आप जानते हैं कौन है सैम बहादुर और रियल लाइफ में आर्मी मैन की कहानी

Sam Bahadur: सैम बहादुर, देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ पर बनी फिल्म, शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। मानेकशॉ ने 1932 में अपने पिता के खिलाफ जाकर भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला लिया। उन्हें बहुत छोटी उम्र में ही युद्ध में जाना पड़ा था। आइये हम आपको बताते हैं रियल लाइफ Sam बहादुर के बारे में बने रहिए हमारे साथ इस आर्टिकल के अंत तक

Sam Bahadur
Sam Bahadur

Sam Manekshaw

फिल्म में Sam Bahadur जो है वह रियल लाइफ में Sam Manekshaw नाम से प्रचलित है इस समय देश भर में सैम मानेकशॉ का नाम बहुत चर्चा में है। वास्तव में, भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ पर आधारित फिल्म Sam Bahadur सिनेमाघर में चल रही है। मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित इस पीरियड ड्रामा में विक्की ने 1971 में पाकिस्तान को बर्बाद करने वाले सैन्य अधिकारी मानेकशॉ की भूमिका निभाई है। विक्की कौशल के अलावा इस फिल्म में सान्या मल्होत्रा, फातिमा सना शेख और मोहम्मद जीशान अय्यूब भी महत्वपूर्ण किरदारों में नजर आने वाले हैं।

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सैम मानेकशॉ कौन हैं

बचपन से सैनिक बनने का सपना देखा एक ऐसा बच्चा जिसने भारतीय सैन्य में अपनी दाखिला लिया और देश के लिए इंदिरा गांधी जैसे प्राइम मिनिस्टर से भिड़ गए ऐसे भारतीय सैनिक का नाम है, सैम मानेकशॉ ।

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता होर्मसजी मानेकशॉ चिकित्सक थे। उनका पूरा नाम था सैम होरमूजजी फ्रांमजी जमशेदजी मानेकशॉ, लेकिन उनके मित्र, पत्नी, नाती और अफसरों ने उन्हें सैम या ‘सैम बहादुर’ कहकर पुकारा।

उत्तराखंड के नैनीताल से पहले पूर्व सैन्य अधिकारी ने हिंदू सभा कॉलेज में चिकित्सा की पढ़ाई की। मानेकशॉ ने अपने पिता के खिलाफ विद्रोह करके 1932 में भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला लिया और दो साल बाद 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में भर्ती हो गए। उन्हें बहुत छोटी उम्र में ही युद्ध में जाना पड़ा था।

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सैम मानेकशॉ सात गोलियां लगी जंग में

1942 में सैम को पहली बार प्रशंसा मिली। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन से उनके गुर्दे, जिगर और आंतों में सात गोलियां मार दीं। उसकी जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वीके सिंह ने बताया, ‘उनके कमांडर मेजर जनरल कोवान ने उसी समय अपना मिलिट्री क्रॉस उतार कर उनके सीने पर इसलिए लगा दिया क्योंकि मृत फौजी को मिलिट्री क्रॉस नहीं दिया जाता था।”

Sam Bahadur
Sam Bahadur

जब मानेकशॉ घायल हुए, आदेश दिया गया कि सभी घायलों को उसी अवस्था में छोड़ दिया जाए, क्योंकि पीछे हटती बटालियन की गति धीमी हो जाती अगर उन्हें वापस लाया जाता। लेकिन उनका दोस्त सूबेदार शेर सिंह ने उन्हें अपने कंधे पर उठा कर पीछे लाया।

इंदिरा गांधी की प्रतिक्रिया

डॉक्टर ने उनकी आंत का घायल हिस्सा काटते हुए अनमने मन से गोलियां निकालीं। सैम आश्चर्यजनक रूप से बच गया। उन्हें पहले मांडले ले जाया गया, फिर रंगून और फिर वापस भारत ले जाया गया। 1946 में, लेफ्टिनेंट कर्नल सैम मानेकशॉ को दिल्ली में सेना मुख्यालय में तैनात किया गया था।

इंदिरा को बताया कि वह ऑपरेशन रूम में नहीं जा सकता। 1962 में चीन से युद्ध के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण ने सीमा क्षेत्रों का दौरा किया। उनके साथ प्रधानमंत्री नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी भी थीं। सैम के एडीसी ब्रिगेडियर बहराम पंताखी ने सैम मानेकशॉ द मैन एंड हिज टाइम्स में लिखा है, “सैम ने इंदिरा से कहा था कि आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकते क्योंकि आपने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है।” इंदिरा को भी तब बुरा लगा था, लेकिन सौभाग्य से मानेकशॉ और इंदिरा के रिश्ते इससे खराब नहीं हुए।”

1971 मैं पाकिस्तान के साथ युद्ध

1971 में युद्ध से पहले सैम की प्रतिक्रिया से वे हैरान थीं सैम मानेकशॉ और इंदिरा गांधी, जो देश की पहली महिला प्रधानमंत्री हैं, यह कहानी काफी चर्चा में है। 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी ने मार्च में पाकिस्तान पर चढ़ाई करनी चाही थी। भारतीय सेना हमले के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए सैम ने ऐसा नहीं किया। इंदिरा गांधी भी इससे परेशान हो गईं। तुम युद्ध जीतना चाहती हो या नहीं, मानेकशॉ ने पूछा। जवाब मिल गया। मानेकशॉ ने इस पर कहा, ‘मुझे छह महीने का समय दीजिए। मैं वादा करता हूँ कि आप जीतेंगे।

Sam Bahadur को फील्ड मार्शल पुरस्कार से सम्मानित

सैन मानेकशॉ को अपने सैन्य करियर के दौरान बहुत सम्मान मिला। 59 वर्ष की उम्र में वे फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित हुए। वह पहले भारतीय जनरल थे जिन्होंने यह सम्मान प्राप्त किया था। 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुए। 1973 में वह एक साल बाद सेना प्रमुख बन गया। सेवा से निवृत्त होने पर वेलिंगटन चले गए। 2008 में वेलिंगटन में ही उनका देहांत हो गया।

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